सद्दाम हुसैन एक ऐसे व्यक्ति की कहानी जो किसी के लिए नायक तो किसी के लिये खलनायक था
- Muneer Khan
- Feb 19
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सद्दाम हुसैन की ज़िंदगी और उनकी विरासत आज के इराक़ के इतिहास में एक बहुत ख़ास जगह रखता है । उन्होंने अपनी ज़िंदगी में बहुत ज़्यादा उतार चढ़ाव देखे सद्दाम हुसैन एक गरीब किसान के घर पैदा हुए फिर वक़्त ने उन्हें इराक़ का राष्ट्रपति भी बनाया । सद्दाम हुसैन के राष्ट्रपति बनने के बाद इराक़ ने बहुत ज़्यादा उतार चढ़ाव देखे कभी युद्ध तो कभी बंदिशें और आख़िर में सद्दाम को फाँसी के तख़ते तक ।
सद्दाम हुसैन इराक़ के एक तिकरित नाम के एक गाँव में 28 अप्रैल 1937 को एक गरीब किसान के यहाँ पैदा हुए । सद्दाम हुसैन के वालिद का नाम हुसैन अब्दुल मजीद था जिनका इंतेकाल सद्दाम हुसैन के पैदा होने से पहले ही हो गया था । सद्दाम हुसैन और उनके भाई को उनकी माँ ने पाला लेकिन बाद में उनकी माँ ने दूसरी शादी कर ली जिसके बाद सद्दाम हुसैन की परवरिश उनके चाचा खेरुल्लाह तुल्फ़ाह ने की जो इराक़ की फ़ौज में एक अधिकारी थे , सद्दाम हुसैन के चाचा का असर सद्दाम हुसैन पर बहुत ज़्यादा पड़ा उन्होंने सद्दाम में राजनीति और देश भक्ति कूट कूट के भर दी ।
सद्दाम हुसैन की शुरू की तालीम तिकरित में ही हुई लेकिन सद्दाम हुसैन ने हाई स्कूल की पढ़ाई बग़दाद में रह कर की । सन् 1957 में सद्दाम हुसैन ने बाथ पार्टी जॉइन कर ली जो एक पैन अरब राष्ट्रवादी पार्टी थी । सद्दाम हुसैन ने बहुत जल्द पार्टी में अपनी अच्छी पहचान बना ली और उन्होंने 1959 में प्रधानमंत्री अब्दुल करीम क़ासिम के क़त्ल में शामिल हुए जिसमें वो नाकाम रहे और ज़ख़्मी हालत में सद्दाम को वहाँ से भागना पड़ा । वहाँ से फिर वो सीरिया और फिर मिस्र चले गये जहां उन्होंने काहिरा यूनिवर्सिटी से लॉ की पड़ाई पूरी की ।
सन् 1963 में बाथ पार्टी इराक़ की सत्ता पर क़ाबिज़ हो गई फिर सद्दाम हुसैन इराक़ वापस लौट आये। लेकिन बाथ पार्टी ज़्यादा दिन सरकार चला ना सकी और 1968 में बाथ पार्टी ने इराक़ की सत्ता पर फिर से क़ब्ज़ा कर लिया । अब सद्दाम हुसैन पार्टी में काफ़ी मज़बूत हो चुके थे वो जल्द ही पार्टी में बुलंद मक़ाम हासिल करने में कामयाब रहे।
इराक़ के राष्ट्रपति अहमद हसन अल बक्र को हटा कर सद्दाम हुसैन ख़ुद राष्ट्रपति बन बैठे और साथ ही साथ बाथ पार्टी के महासचिव पद पर भी क़ायम हो गये । सद्दाम ने राष्ट्रपति बनते ही मुख़ालफ़ीन को ख़त्म करने का काम तेज़ी से शुरू किया । उन्होंने पार्टी के भीतर अपने विरोधियों को निशाना बनाया जिसमें सेकड़ों लोग गिरफ़्तार और मारे गये । इसके बाद सद्दाम हुसैन का इराक़ पर पूरी तरीक़े से नियंत्रण स्थापित हो गया ।
सद्दाम हुसैन ने अपने शासनकाल में आर्थिक व्यवस्था और सामाजिक व्यवस्था पर काफ़ी ज़ोर दिया । शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं को काफ़ी बेहतर बनाया और तेल उद्योग का राष्ट्रीयकरण किया इससे इराक़ ने काफ़ी तेज़ी से विकास किया । वहीं दूसरी और सद्दाम हुसैन का शासनकाल बहुत ज़्यादा निरंकुश और दमनकारी था । उन पर आरोप था कि उन्होंने अपने विरोधियों को अपनी क्रूरता से दबाया और मानवता का गंभीर उल्लंघन किया ।
सन् 1980 में ईरान इराक़ युद्ध की शुरुआत हो गई । ये युद्ध काफ़ी खूनी साबित हुआ । 8 साल तक चलने वाले इस युद्ध में लाखों लोग मारे गए । सद्दाम हुसैन ने सोचा था ईरान कमज़ोर है वो उस पर आसानी से जीत हासिल कर लेंगे । जबकि ये युद्ध काफ़ी लंबा खिंच गया और दोनों मुल्कों को काफ़ी नुक़सान झेलना पड़ा । सद्दाम हुसैन में ईरान से जंग में रासायनिक हथियारों का इस्तेमाल भी करा जिससे ईरान के हज़ारों सैनिक और नागरिक मारे गए । ईरान युद्ध के कारण इराक़ का भी काफ़ी नुक़सान हुआ और इराक़ भारी क़र्ज़ के बोझ तले दब गया ।

सन् 1990 में इराक़ ने कुवैत पर हमला कर दिया । जिसकी दुनिया भर में बहुत निंदा हुई । सद्दाम हुसैन का मानना था कि कुवैत ऐतिहासिक रूप से इराक़ का ही हिस्सा है । तेल की क़ीमतों को नियंत्रण करने के लिए कुवैत पर क़ाबिज़ होना चाहते थे । जबकि संयुक्त राष्ट्र ने इराक़ के इस हमले को अवैध बताया और एक अंतरराष्ट्रीय गठबंधन ने इराक़ के ख़िलाफ़ सैन्य कार्यवाही शुरू कर दी । इस युद्ध को खाड़ी युद्ध के नाम से जाना जाता है और इस युद्ध में इराक़ को भारी हार का सामना करना पड़ा था । इराक़ी सेना को कुवैत से खदेड़ दिया गया और इराक़ देश पर कई तरहन के कड़े प्रतिबन्ध लगा दिये गये ।
खाड़ी युद्ध के बाद सद्दाम हुसैन का शासन कमज़ोर हो गया था बावजूद इसके सद्दाम हुसैन इराक़ पर नियंत्रण बनाये रखने में कामयाब रहे । 2003 आते आते एक बार फिर संयुक्त राष्ट्र और उसके सहयोगी देशों ने इराक़ पर हमला कर दिया, इस हमले का उद्देश्य सद्दाम हुसैन को सत्ता से हटाना और इराक़ के पास मोजूद परमाणु एवं जैविक हथियारों को नष्ट करना था । इस युद्ध में इराक़ी सेना जल्दी ही हर गई और सद्दाम हुसैन को भागने पर मजबूर होना पड़ा । सद्दाम हुसैन को दिसंबर 2003 में अमेरिकी सैनिकों द्वारा गिरफ़्तार कर लिया गया।
सद्दाम हुसैन पर मानवाधिकारों का हनन तथा उसके ख़िलाफ़ अपराधों का मुक़दमा चलाया गया । आख़िरकार सद्दाम हुसैन को 2006 में मौत की सज़ा सुनाई गई, 30 दिसंबर 2006 को सद्दाम हुसैन को फाँसी हो गई । उनकी मौत के साथ ही उनकी सत्ता का भी अंत हो गया । लेकिन आज भी सद्दाम हुसैन का असर इराक़ और पूरे मद्य पूर्व क्षेत्र में देखने को मिलता है ।
सद्दाम हुसैन की ज़िंदगी और उनका शासन इतिहास अपनी एक ख़ास अहमियत रखता है । उन्होंने इराक़ को एक सबसे उन्नत देश बनाने की कोशिश की , लेकिन उनके तरीक़े बहुत ज़्यादा निरंकुश और समंदरों थे । उनके समय में इराक़ ने बहुत सारे युद्धों को झेला लेकिन उनकी मौत के बाद भी इराक़ स्थिर ना रह सका ।





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